Kumaouni Kavita – Kumaon Poem

Check out this Kumaouni Kavita on Facebook. How Facebook is interfering in our personal life, find with this Garhwali Kumaoni poem.

ओ बाज्यू मैं फेसबूकी गयु,
नन्तिनको टीटाट, सैणी को कचकचाट
ईजा को नौराट, बाबु को बड़बड़ात
मेरी है रे यो चाटमचाट
घर वाला के भूली गयु,
ओ बाज्यू मैं फेसबूकी गयु,

गों गाड कि दोस्ती छूटी गई
को छू पडोसी पत न होई
जे के न देखरा एक बार
यस छन म्यार फ्रेंड हज़ार
दिन रात फ्रेंड रेकुएस्ट भेज्न्यु
ओ बाज्यू मैं फेसबूकी गयुं

को सैणी को मैस, को बैनी को कैंज
को दाज्यू को भौजी को मामी को मौसी
ठुल नान सब को फ्रेंड कुन्यु
ओ बाज्यू मैं फेसबूकी गयुं

खान का पैली, खाना का बाद
दिन भर ऑफिस में घर में आदुक रात
फटाफट लोग इन कर न्यु
ओ बाज्यू मैं फेसबूकी गयुं

जेके मन आ लाइक कर दिन्यु
मन भर सबकी फोटो देख्णु
को के के के कुनौ चुपचाप सुन्नुयु
जा मन आई आपण खुट अड्डा दिन्यु
सीध साद आदमी छुयु औरे है गयुं
ओ बाज्यू मैं फेसबूकी गयुं

दुई आदमी दगड़ बात न करी
आज “विचार व्यक्त” करन्यु
कभे एक शब्द न लेख्यो
(मेरी हिम्मत देखो )आज कविता लेखन्यु
ओ बाज्यू मैं फेसबूकी गयुं

2 thoughts on “Kumaouni Kavita – Kumaon Poem

  1. Dayadhar sharma

    Bhai Harish,Honhaar veervan ke hot cheekne paat.Veeron ko banane ke kaarkhane nahin hote,ve devdaar darakhton ki taraf khud b khud jeevan samar ke liye taiyyar ho jaate hain.Bahut achchha likha hai,Saar,mantabya ke sath-sath hasya ka put aur achcha lagta hai.Dear likhte jao,tumhaare mureed like karne ke liye baithe hain.All the best,God bless you.

    Reply

Leave a Reply

Your email address will not be published.